कुंवारी बुर को लगी लंड लेने की तलब- 1

विलेज देसी सेक्स की कहानी में गाँव की एक लड़की की है जिस पर अपने भाई भाभी की सेक्स की आवाजें सुनकर चुदाई का मजा लेने का भूत सवार हो गया.

यह कहानी सुनें.


नमस्कार दोस्तो, मैं कोमल आप सबके सामने एक और सेक्स कहानी के साथ हाज़िर हूँ.
मेरी पिछली सभी कहानियों को पसंद करने के लिए आप सभी का दिल से धन्यवाद.

दोस्तो, आप लोगों के मेल मुझे मिलते रहते हैं और मेरे कई अच्छे दोस्त बने हैं.

उनमें से एक पाठिका मेरी सहेली बन गई और उसी की कहानी मैं आज आप लोगों के सामने रख रही हूँ.

मेरी उस सहेली का नाम मधु शर्मा है.
उसने अपनी कहानी मुझे मेल की, जिसे मैंने अपनी कलम से सजाया और आप लोगों के सामने पेश कर रही हूं.
आप मधु की तरफ से ही इस विलेज देसी सेक्स की कहानी का मजा लें.

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम मधु है और वर्तमान में मेरी उम्र 46 साल की है.

मैं अपनी जो कहानी बताने जा रही हूं, वो आज से लगभग 27 साल पुरानी है.
उस वक्त मैं 19 साल की थी.
अभी तो मैं लखनऊ में रह रही हूं मगर शादी के पहले मैं एक छोटे से गांव में रहा करती थी.

जिंदगी में कोई भी व्यक्ति अपनी पहली चुदाई को कभी नहीं भूल सकता … चाहे वो मर्द हो या औरत.
वैसा ही मेरा भी हाल है. चाहकर भी मैं अपनी पहली चुदाई कभी नहीं भूल पाती.
वो मेरी चूतकी सील का टूटना और बेइंतहा दर्द, आज भी मुझे अच्छे से याद है.

जब मैं 22 साल की थी, तब मेरी शादी हुई थी. मगर उससे पहले मैंने चुदाई का इतना मजा लिया था कि शायद ही शादी के बाद वैसा मजा मिला हो.

शादी के बाद मैं लखनऊ में अपनी ससुराल में आ गई.

आज आप मेरी जिंदगी के उस हिस्से में चलिए, जब मैं गांव में अपने माता पिता के साथ रहा करती थी.

मेरे घर पर मेरे माता-पिता, मेरा बड़ा भाई, मेरी भाभी और मैं रहा करते थे.
मेरे पिता और भाई दोनों खेती का काम किया करते थे.
गांव में हम लोग काफी संपन्न लोगों में से थे.

मेरे भाई ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे मगर मेरी पढ़ाई के प्रति रुचि देख घर के लोग मुझे आगे पढ़ाना चाहते थे.
गांव में मेरी कुछ ही सहेलियां थीं, जिनकी पढ़ाई जारी थी.

हमारे गांव में केवल 10 वीं तक की शिक्षा के लिए स्कूल था. आगे की पढ़ाई के लिए हमें दूसरे गांव जाना पड़ता था, जो 5 किलोमीटर दूर था.

जब मैं 10 वीं में थी, तभी से मेरा बदन काफी भर गया था और गदराया हुआ दिखने लगा था.
उस समय मेरी चढ़ती जवानी के दीवाने मेरे पीछे लाइन लगा कर खड़े रहते थे.

गांव में जब मैं निकलती, तो चाहे मेरी उम्र के लड़के हों या शादीशुदा अधेड़ उम्र के आदमी हों, सभी की निगाह मेरे तने हुए बड़े बड़े चूचों पर … और मेरी उभरी हुई गांड पर टिक जाती थी.
मैं भी उस समय तक सब जानने समझने लगी थी कि वो लोग ऐसा क्या देखते थे.

औरत मर्द के बीच क्या संबंध बनाए जाते हैं, इन सबकी जानकारी मुझे हो गई थी.

घर में मेरे कमरे के बगल में ही मेरे भइया भाभी का कमरा था और अक्सर रात में मेरी भाभी की जोश से भरी हुई आहें मुझे सुनाई दिया करती थीं.

मेरे और भाभी के बीच हंसी मजाक चलता रहता था और उनके द्वारा ही मुझे काफी कुछ सीखने और जानने को मिला था.

उसके अलावा भी मेरी कुछ सहेलियां थीं, जिन्होंने चुदाई का खेल खेला हुआ था.
उनके द्वारा भी मुझे सब पता चलता रहता था.

रात में अक्सर मेरे दोनों हाथ मेरी चूत को सहलाया करते क्योंकि कहीं न कहीं अब मुझे भी किसी साथी की जरूरत महसूस होने लगी थी.

मैं दिखने में काफी सुंदर गोरी और भरे बदन की लड़की थी.
गांव के कई लड़के मेरे दीवाने थे मगर मुझे कोई पसंद नहीं आता था और गांव में जो मुझे अच्छा लगता था, उसकी शादी हो चुकी थी.

उसकी शादी हो जाने के बाद भी वो मुझे तिरछी नजरों से देखा करता था.
उस वक्त मैं अन्दर तक कामुक हो जाती थी और मेरी चूतमें चींटियां रेंगने लगती थीं.

उम्र में वो मुझसे करीब 15 साल बड़ा जरूर था मगर मन ही मन में वो मुझे काफी पसंद था.
उसका नाम किशोर था.

एक बार की बात है. वो होली का दिन था और हम सब सहेलियां होली खेलने के बाद नदी में नहाने के लिए गई हुई थीं.

हम लोगों ने थोड़ी बहुत भांग भी पी हुई थी. सब मस्ती कर रही थीं.
नदी में नहाने के बाद मेरी बाकी सहेलियां तो अपने घर चली गईं मगर मैं और मेरी एक अन्य सहेली ने कुछ और देर तक नदी में रुकने का मन बनाया.

नहाने के बाद हम दोनों वैसे ही गीले और भीगे हुए कपड़ों में नदी के किनारे रेत पर लेट गईं.
हमारे गीले कपड़े बदन से कुछ ऐसे चिपके हुए थे कि अन्दर का हर एक अंग साफ साफ झलक रहा था.

वैसे ही लेटे लेटे हम दोनों की आंख लग गई.
कुछ समय बाद अचानक से मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि मेरे सामने किशोर खड़ा हुआ था और मेरे बदन को निहार रहा था.

मैंने जल्दी से अपनी सहेली को उठाया और हम दोनों वहां से वापस घर की तरफ चल दिए.

आधे रास्ते पर मुझे याद आया कि मैं अपने सूखे कपड़े वहीं भूल आई थी.
मैंने अपनी सहेली को साथ चलने के लिए कहा, मगर वो नहीं गई.

मैं अकेली वापस नदी पर गई और देखा कि किशोर नहा रहा था.
मुझे दूर से ही देखकर वो नदी से निकल कर बाहर आ गया.
उस वक्त उसने केवल एक चड्डी पहनी हुई थी.

मेरी तिरछी नजर चड्डी में उसके तने हुए लंड पर जा रही थी.
मैंने चुपचाप अपने कपड़े उठाए और आने लगी.

तभी किशोर की आवाज आई- अरे कोई हमारे साथ भी तो नहा ले.
मैंने अपनी गर्दन पीछे की तरफ घुमाई और मुस्कुराते हुए उसे देखा और वहां से भाग आई.

शायद मेरे मुस्कुराने का ही असर था कि अब वो रोज मेरे घर के आसपास चक्कर लगाने लगा और मेरे स्कूल के समय भी रास्ते में मुझे देखता और मुस्कुरा देता.

कभी कभी मेरे चेहरे पर भी हल्की मुस्कान आ जाती.
इसी तरह मैंने अपने गांव के स्कूल से 10वीं पास कर ली और अब मुझे आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव जाना था.

मैं और मेरी दो सहेलियां हम तीन लड़कियां ही वहां जाती थीं.

स्कूल के रास्ते में ही गांव से कुछ दूरी पर किशोर का खेत पड़ता था और वो रोज आते और जाते समय मुझे निहारने लगा.

मेरे साथ मेरी सहेलियां रहती थीं इसलिए वो कुछ कह नहीं पाता था.
मगर एक दिन उसे वो मौका मिल गया.

मेरी दोनों सहेलियां उस दिन स्कूल नहीं गईं और मैं अकेली ही स्कूल गई थी.

हम लोग पैदल ही स्कूल जाते थे और गांव के बाद जब खेत का इलाका खत्म होता था, तो थोड़ा सा जंगल पड़ता था.

उस दिन किशोर ने मुझे अकेले स्कूल जाते हुए देख लिया था और जब मैं स्कूल से वापस आ रही थी तो मैंने देखा कि जंगल में किशोर बीच रास्ते में अपनी साइकल लेकर खड़ा था.

उसे देखकर मेरी चाल थोड़ी धीमी पड़ गई.
मैंने पीछे पलट कर देखा दूर दूर तक कोई नहीं था.
मैं समझ गई कि वो आज मुझे कुछ न कुछ जरूर बोलने वाला है.

मैं जब उसके पास पहुंची और उसके बगल से निकलने लगी तो अचानक से उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे रुकने के लिए कहा.

मेरे कदम वहीं थम गए, शायद मेरे कदम इसलिए रुके क्योंकि मैं भी उसे पसंद करने लगी थी.
मैं अपनी नजरें दूसरी तरफ किए हुई बोली- क्या है, मुझे ऐसे क्यो रोक लिया?

वो- तुमसे कुछ बात करनी है.
मैं- क्या बात?

वो- मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, बस यही बताने के लिए तुम्हें रोका है. अगर तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए कुछ है, तो अपना जवाब देना … नहीं तो मैं दुबारा तुम्हें परेशान नहीं करूंगा.

मैं- मगर तुम शादीशुदा हो और मुझसे इतने बड़े भी हो. किसी को पता चलेगा तो पूरे गांव में बदनामी हो जाएगी.
वो- मुझ पर विश्वास करो, ऐसा कुछ नहीं होगा. किसी को पता नहीं चलेगा. ये बात केवल हम दोनों तक ही रहेगी. फिर तुमसे ज्यादा डर तो मुझे है. मेरी पहले से ही बीवी बच्चे हैं.

मैंने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली- कल नदी के पास मिलना, तब मैं अपना जवाब बताऊंगी.
बस इतना कह कर मैं वहां से दौड़ती हुई भाग आई.

सारी रात मैं करवटें बदलती रही और उसकी बातों को सोचती रही कि क्या मैं सही कर रही हूँ या गलत.
मगर मेरी कुंवारी जवानी ने शायद मुझे बहका दिया और मैंने उसे हां करने का फैसला कर लिया.

अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी और मैं घर पर ही थी.
घर के काम से फुर्सत होकर दोपहर करीब 3 बजे मैं अकेली ही नदी की तरफ चल दी.

किशोर पहले से ही वहां मौजूद था.
उस वक्त नदी के आसपास कोई भी नजर नहीं आ रहा था.

मुझे देखते ही किशोर मेरे पास आ गया और बोला- बताओ क्या सोचा तुमने?
मैं- सोचना क्या है, तुम भी मुझे पसंद हो … मगर ये बात कभी किसी को पता नहीं चलनी चाहिए.
वो- कभी नहीं चलेगी. मैं कभी किसी को नहीं बताऊंगा.

इतने में ही हमें किसी की आहट सुनाई दी.
किशोर ने झट से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे नदी के किनारे टीले के बीच ले गया.

टीले के बीच एक दरार थी.
वहीं झाड़ियों में हम दोनों छुप गए. हमें वहां कोई नहीं देख सकता था.

उस वक्त किशोर मुझे अपने सीने से लगाए हुए था क्योंकि वो जगह काफी संकरी थी.
मैं भी किशोर से चिपकी हुई थी.
मेरे उभरे हुए दोनों दूध उसके सीने पर दबे जा रहे थे, मेरी सांस काफी तेज रफ्तार से चल रही थी.

हम दोनों बिल्कुल शांत होकर एक दूसरे की आंखों में देखे जा रहे थे.
मुझे काफी डर भी लग रहा था कि कहीं कोई देख न ले.

किशोर का चेहरा मेरे चेहरे के पास आता गया और ऐसे ही करते हुए उसने मेरे गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

वो मेरी जिंदगी का पहला चुम्बन था.
मेरे हाथ भी किशोर के बालों पर चलने लगे.
हम दोनों के बदन एक दूसरे से चिपक गए.

मेरे पेट के पास कुछ कठोर सा चीज चुभ रहा था. मैंने ध्यान दिया तो वो किशोर का तना हुआ लंड था.
मैंने कभी भी किसी मर्द का लंड नहीं देखा था.

उस वक्त भी उसका लंड उसके पैंट के अन्दर था, बस उसके पेट से छूने से लंड का अहसास हो रहा था.
देखते ही देखते किशोर का एक हाथ मेरी कमर से होता हुआ मेरे पिछवाड़े तक चला गया और वो मेरे चूतड़ों को सहलाने लगा.

मैंने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ कर अलग कर दिया और उससे अलग हो गई.
मैं उस वक्त वो सब नहीं करना चाहती थी और उसने भी इस बात को समझते हुए कुछ नहीं किया.

उसके बाद कुछ समय बाद जब वहां कोई नहीं था तो हम लोग अपने अपने घर की तरफ चल दिए.
रात भर मेरे आंखों से नींद गायब थी और मैं अपने पहले चुम्बन के अहसास को याद करते हुए जागती रही.

दोस्तो, अब विलेज देसी सेक्स की कहानी के अगले भाग में आप मेरी पहली चुदाई पढ़ेंगे.
इसके अलावा भी मैंने किन किन लोगों के साथ बिस्तर पर चुदाई के मजे किए, ये सब कहानी के आने वाले भाग में आप पढ़ेंगे. आप मुझे मेल करें.
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विलेज देसी सेक्स की कहानी का अगला भाग: कुंवारी बुर को लगी लंड लेने की तलब- 2

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